जानिए गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड कराने का सही समय

  • Healthy Nuskhe
  • Jul 23, 2020

जानिए गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड कराने का सही समय

जब भी कोई महिला गर्भवती होती है तो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में बहुत ही ज्यादा बदलाव आते हैं। मानसिक रूप से भी उसके अंदर काफी कमजोरी या अकेलापन उसे महसूस होने लगता है, साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य भी उसके अलग-अलग प्रकार के बदलाव आने शुरू हो जाते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि एक गर्भवती महिला के लिए अल्ट्रासाउंड किस लिए जरूरी है और वह कब कब अपना अल्ट्रासाउंड करा सकती है। साथ ही ध्यान रखें कि गर्भवती महिला को हमेशा डॉक्टर की राय पर ही अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए जब डॉक्टर कहें तभी वह जाकर अपना चेकअप कराएं। डॉक्टर महिलाओं को नियमित रूप से जांच कराने की सलाह देते हैं ताकि उनके बच्चे के विकास पर नज़र राखी जा सके। इससे आपको भी सहुलियत रहेगी की अगर बच्चे को कुछ भी हो तो समय रहते उसका इलाज हो जायेगा। तो आइए जानते हैं की गर्भवती महिला को कब कब अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए।


अल्ट्रासॉउन्ड कैसे काम करता है?


बहुत-सी महिलाओं को यह लगता है कि गर्भवती के दौरान शायद कुछ अलग तरीके से अल्ट्रासाउंड की विधि होती होगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है जैसे आप आम तौर पर अल्ट्रासाउंड कर आते हैं यह भी उसी तरह से ही होता है। अल्ट्रासॉउन्ड में डॉक्टर आपके पेट पर रेडिओएक्टिव जेल लगाते हैं जिसके माध्यम से शरीर के अंदरूनी हिस्से दिखने लगते हैं। यह जेल लगाने के बाद आपके शरीर पर डॉक्टर एक मैग्नेटिक मशीन लगाते हैं। इस मशीन के अंदर से मैग्नेटिक किरणें निकलती हैं जो जेल की सहायता से त्वचा को पार कर जाती हैं और शरीर के अंदरूनी हिस्सों की फ़ोटो कंप्यूटर पर देख सकते हैं।


अल्ट्रासॉउन्ड क्यों बेहतर है?


अन्य चेकअप और ट्रीटमेंट की जगह अल्ट्रासाउंड बहुत ही बेहतर उपाय है क्योंकि इसकी वजह से बच्चे को किसी भी तरह की परेशानी नहीं होती। यदि आप बच्चे की स्थिति जानने के लिए एक्स-रे का इस्तेमाल करते हैं तो वह उसके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं रहेगी क्योंकि ऐसे टेस्ट में इस्तेमाल की जाने वाली किरणें शिशु के लिए बहुत ही ज्यादा हानिकारक साबित हो सकती हैं। इसीलिए अल्ट्रासाउंड ही सबसे अच्छा उपाय है। अल्ट्रासॉउन्ड में ध्वनि किरणें द्वारा इमेज बन जाती है। ध्वनि तरंगें अंदर के अंगों से टकराकर वापस लौट आती हैं जैसे ही ये टकराती हैं तो उसे मशीन पर इमेज/अल्ट्रासॉउन्ड रिपोर्ट के रूप में पकड़ लिया जाता है।


अल्ट्रासाउंड से क्या क्या जानकारी मिलती है? 


1.अल्ट्रासाउंड की मदद से आप अपने अंदरूनी अंगो की जांच करवा कर देख सकते हैं कि आपका बच्चा सही से विकास कर पा रहा है या नहीं।


2.अल्ट्रासाउंड द्वारा आप शिशु के ह्रदय हाथ पैर के विकास को भी बहुत ही आसानी से देख और जांच सकते हैं।


3.अल्ट्रासाउंड की मदद से आपको यह भी पता लग जाता है कि बच्चे की हड्डियों में किसी भी तरह की परेशानी तो नहीं है। यदि शिशु की हड्डियों में कोई भी संदिग्ध विकृति होती है तो उसका भी बहुत ही आसानी से पता लग जाता है।


4.अल्ट्रासाउंड मशीन के द्वारा कंप्यूटर पर दिखाई गई इमेज को आप देख सकते हैं कि आपके शिशु की लंबाई कितनी है, उसका आकार कैसा है, वह कितना बढ़ गया है और उसका स्वास्थ्य कैसा है इन सभी चीजों को आप अल्ट्रासाउंड द्वारा जान सकते हैं।


5.अल्ट्रासाउंड की मदद से आप यह भी जान सकते हैं कि शिशु गर्भ में किस अवस्था में पड़ा है ब्रीच या सामान्य।


6.अल्ट्रासाउंड मशीन की मदद से आप कंप्यूटर द्वारा अपने बच्चे के सर को भी देख सकते हैं कि क्या उसका सर सामान्य रूप से बढ़ रहा है या नहीं।


7.गर्भवती महिलाओं में शारीरिक रूप से कई तरह के बदलाव होते हैं उसी कड़ी में आप अल्ट्रासाउंड की मदद से यह देख सकते हैं कि मां के शरीर में एमनीओटिक द्रव्य का क्या स्तर है।


8.अल्ट्रासाउंड की मदद से आप चाहे तो अपने डिलीवरी का दिन भी निर्धारित करवा सकते हैं। जी हां शिशु की पैदाइश के लिए भी एक दिन आप अल्ट्रासाउंड की मदद से निर्धारित कर सकते हैं।


गर्भावस्था के दौरान एक महिला को आमतौर पर कितनी बार अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए?


डॉक्टर सलाह देते हैं कि यदि गर्भवती महिला बिल्कुल स्वस्थ है तो ज्यादातर उसे दो स्कैन जरूर करवाना चाहिए लेकिन वह भी डॉक्टर की सलाह लेने के बाद।गर्भवती महिला को पहली बार स्कैन पहली तिमाही में करवाना चाहिए। पहले स्कैन की मदद से आप यह जान सकते हैं कि आने वाले समय में आप का शिशु जब जन्म ले सकता है या फिर किस तारीख को वह जन्म लेने के लिए तैयार है। यह जानकारी आपको पहले स्कैन में मिल जाती है, उसके बाद दूसरे स्कैन दूसरा स्कैन 18 हफ़्तों बात कराना चाहिए। दूसरे स्कैन में बच्चे के शरीर के सभी अंग सामान्य रूप से बढ़ रहे हैं या नहीं इसका पता किया जाता है। ऐसा करने से कि बच्चे का स्वास्थ्य के बारे में बहुत ही आसानी से पता लग जाता है।

डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।


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