जानिए गर्भावस्था के समय एनीमिया होने के कारण और एनीमिया से बचाव के तरीके

  • Healthy Nuskhe
  • Jun 09, 2020

 जानिए गर्भावस्था के समय एनीमिया होने के कारण और एनीमिया से बचाव के तरीके

एनीमिया लाल रक्त कोशिकाओं की कम संख्या या निम्न स्तर के हिमोग्लोबिन की कमी से होता है। यह स्थिति अन्य दिनों की अपेक्षा गर्भावस्था के दौरान आम होती है, क्योंकि शरीर में आयरन मांग बढ़ जाती है खासतौर पर द्वितीय और तृतीय तिमाही में, इस समय शरीर को भ्रूण के विकास व वृद्धि के लिए अधिक रक्त के उत्पादन करने की जरूरत होगी।


लाल रक्त कोशिकाएं बोनमैरो में बनती है। इसकी कमी शरीर में कम उत्पादन या रक्त के नुक्सान के कारण होती है। शरीर को अधिक संख्या में कोशिकाओं को बनाने के लिए लौह तत्व, विटामिन-बी12 और फोलिक एसिड की पुर्ण मात्रा में आवश्यकता होती हैं। इनमें से किसी भी तत्व में कमी के कारण एनिमिया हो सकता है। गर्भावस्था के समय हल्का एनीमिया होना एक आम बात है, पर अगर ये स्तर ज्यादा गिर जाए तो इस से कई बड़ी समस्या हो सकती है जैसे समय पूर्व प्रसव, लो बर्थ वेट और शिशु को एनेमिया, इससे शिशु का विकास भी धीमा हो सकता है।

 फोलिक की कमी से होने वाला एनीमिया

गर्भावस्था के दौरान ख़ून में फोलिक की कमी के कारण एनीमिया होता है और यह फोलिक एसिड की कमी के कारण होता है। गर्भावस्था के दौरान लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने के लिए शरीर को अधिक फोलिक की जरूरत होती है। फोलिक की कमी से होने वाले एनीमिया में लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य से बड़ी हो जाती है और इस में इन्हें मैगालोकाइटस कहा जाता है। फोलिक एसिड की कमी के कारण शिशु में मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड के विकास पर  असर होता है।

फोलिक एसिड की कमी से होने वाले एनीमिया के कारक

ज्यादा पका हुआ भोजन खाना।

आहार में विटामिन की कम मात्रा लेना।

मेडिकल कंडीशन जैसे सिकेल सेल एनीमिया।

ज्यादा अल्कोहल पीना।

किडनी में समस्या।


लक्षण

कमजोरी और बेहोशी, कुंठित महसूस करना, भूलना, भूख ना लगना, ध्यान केंद्रित करने में समस्या, मांसपेशियों में कमजोरी आना, जीभ में दिक्कत होना, डिप्रेशन की तरह जाना


इस तरह कर सकते हैं बचाव 

आहार में अधिक हरी सब्जियां और स्ट्रीक फ्रूट की मात्रा लेनी चाहिए।

फलियां, सिरियल और मेलनस का सेवन करना फायदेमंद होता है।

डॉक्टर के निर्देशों के अनुसार नियमित रूप से 0.4mg की फोलिक एसिड की दवाई ले इससे भी मदद मिलती है।


आयरन की कमी होने के कारक

आयरन के अवशोषण को प्रभावित करने वाले पदार्थो का अधिक सेवन करना। बीस साल की उम्र से पहले गर्भवती होना।

पेट व आंतों से संबंधित बीमारियां होना जो शरीर का पोषण अवशोषित करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं।

विशेष दवाईयां लेना जो अवशोषण तंत्र को प्रभावित करती हों, प्रसव के दौरान ख़ून का अत्यधिक नुकसान। मॉर्निग सिकनेस के कारण ज्यादा उल्टी होना।

गर्भावस्था से पूर्व अत्यधिक मासिक धर्म।


गर्भावस्था के दौरान एनीमिया के लक्षण

चक्कर आना, सांस लेने में दिक्कत, सर दर्द होना, रंग पीला पड़ जाना, ध्यान एकत्र करने में दिक्कत होना, छाती में दर्द महसूस होना, पैर कांपना, हाथ व पांव ठंडे होना, मुलायम होंठ, ओरल कैवेटी और इनर आईलेड, मुंह के कोनों में दरार ना खाई जाने वाली चीजों के लिए मन ललचाना जैसे बर्फ।


गर्भावस्था में इससे बचाव कैसे करें 

आयरन युक्त भोजन खाएं जैसे शीरिम्प, टर्की, बीफ, बीन्स, लेंटिलस और ब्रेकफास्ट सिरियल्स।

ऐसा भोजन खाएं जो आयरन के अवशोषण को बढ़ाए जैसे स्ट्रोबैरी, संतरे का जूस, ग्रेपफ्रूट,शीमलामिर्च और ब्रोकली।

आयरन सप्लीमेंट के साथ हल्का स्नैक्स ले ‌आयरन सप्लीमेंट से स्थिति में सुधार होगा।


विटामिन बी 12 की कमी

लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में विटामिन-बी12 अन्य आवश्यक विटामिन है। फोलेट और विटामिन-बी12 अधिकतर एक साथ ही आते हैं।

विटामिन-बी12 के कारक इस बीमारी में जहां आपकी आंतें विटामिन को अवशोषित करने की क्षमता खो देती है।


लक्षण

कमजोरी होनाथकावट होना, दिल तेजी से धड़कना, सांस लेने में दिक्कत शुरू हो जाना, पीली त्वचा होना, मसूड़ों से खून आना, कब्ज़ या दस्त लगना, पेट में तकलीफ़ महसूस होना


एनीमिया

एनीमिया बीमारी के बचाव हम अपने खाने में सुधार से भी कर सकते हैं।इसलिए ऐसा आहार ले जो विटामिन बी 12 के अवशोषण को बढ़ाए जैसे बीफ, मछली, अंडे और दूग्ध उत्पाद। अगर डॉक्टर सुझाव दे कि बी12 सप्लिमेंट भी ले सकते हैं। एनीमिया को समय पर ध्यान रखने से आसानी से ठीक किया जा सकता है। इसलिए अगर उचित आहार और सप्लिमेंट का सेवन करेंगे तो आप समय पर इसका उपचार नहीं कर पाएंगे और ये शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है इसलिए एनीमिया की समय पर जांच कराएं और रख-रखाव करें ताकि आप एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे पाएंगे।


डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।


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