आई.वी.एफ तकनीक की मदद से महिलाओं को मिलता है संतान सुख
- Healthy Nuskhe
- Jan 06, 2020

दुनिया भर में कई ऐसी महिलाऐं है जो प्रजनन की समस्या से जूझती है और कई बार सभी सावधानियाँ बरतने के बाद भी गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है। सर्वेक्षण के अनुसार 6.7 प्रतिशत महिलाऐं ऐसी हैं जो इनफर्टिलिटी की समस्या का शिकार होती है। ये समस्या शरीर में कमी, गलत खानपान और गलत जीवनशैली की वजह से भी हो जाती है। इन विट्रो फर्टिलाइजेशन इस समस्या का पुरा नाम है, जिसमें अंडों को शुक्राणु से आर्टिफिशियल तरीके से मिलाया जाता है और यह सारी प्रक्रिया मेडिकल लैब में नियंत्रित परिस्थितियों द्वारा की जाती है। इसे टेस्ट ट्यूब प्रक्रिया भी कहा जाता है, ये तकनीक उन महिलाओं के लिए बनाई गयी है जो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं।
आई.वी.एफ के मुख्य चरण- आई.वी.एफ के मुख्य चरण होते है जिसकी जानकारी आज हम आपको बताएंगे।
पहला चरण- महिलाओं के अंडाशय में जैसे हर महीने एक अंडा बनता है ऐसे ही आई.वी.एफ के जरिए महिलाओं को ऐसी दवाइयाँ दी जाती है जिससे उनके अंडाशय में एक से ज्यादा अंडे बनने लगते है, दवाइयों के जरिए ज्यादा अंडे इसलिए बनाए जातें हैं ताकि ज्यादा मात्रा में स्वास्थ्य भ्रूण बनाए जा सकें।
दूसरा चरण- आई.वी.एफ के दूसरे चरण में अंडाशय में बनाए गए अण्डों को बाहर निकाला जाता है जिसकी प्रक्रिया में महिला को 15 मिनट के लिए बेहोश किया जाता है और उसके बाद अल्ट्रासाउंड की मदद से देखते हुए महिला की योनि में एक पतली सी सिरिंज से उस अंडे को बाहर निकाला जाता है।
तीसरा चरण- आई.वी.एफ के तीसरे चरण में लेब में पुरुष के शुक्राणु को अलग किया जाता है और इन्हें महिलाओं के अण्डों से मिलाया जाता है। मिलाने की प्रक्रिया में अण्डों के अंदर इंजेक्शन के जरिए शुक्राणु को डाला जाता है जिसके बाद उन्हें इनक्यूबेटर में रख दिया जाता है।
चौथा चरण- इनक्यूबेटर में रखने के बाद 2 से 3 दिन में भ्रूण का विकास होना शुरू हो जाता है। कुछ समय बाद अंडा 6 से 8 सेल के भ्रूण में जाने के लिए तैयार हो जाता है। अच्छी क्वालिटी के कुछ अण्डों को लैब वाले ट्रांसप्लांट के लिए रख लेते हैं।
पांचवा चरण- अण्डों को पुरी तरह से बन जाने के बाद महिला के गर्भाशय में एक पतली नली के जरिए दोबारा अल्ट्रासाउंड की निगरानी में महिलाओं के अंदर उस अंडे को डाला जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस ट्रांसप्लांट में किसी प्रकार का ऑपरेशन या फिर दर्द नहीं होता, ट्रांसप्लांट से भ्रूण का विकास उसी प्रकार होता है जैसे नार्मल महिलाओं का होता है।
आईवीएफ का लाभ क्या है- आई.वी.एफ का सबसे बड़ा लाभ यह है कि जो महिलाऐं संतान न होने की वजह से परेशान रहती थी उनको माँ बनने का सुख प्राप्त होता है। उन लोगों के लिए ये बहुत बड़ी बात है, जिनको किसी कारणवश माता-पिता बनने में दिक्कत आती थी। महिलाओं के फैलोपियन ट्यूब में किसी प्रकार की रुकावट आने से इस समस्या का सामना करना पड़ता है उनके लिए इस प्रक्रिया से गर्भधारण करना आसान होगा।
आई.वी.एफ तकनीक की कीमत- इस तकनीक की कीमत अलग-अलग प्रकार की होती है जैसे स्पर्म डोनर का खर्चा, हॉस्पिटल का खर्चा और अन्य मेडिकल उपकरणों का खर्चा मिलाकर इनकी लागत बनती है। आई.वी.एफ के खर्चे अलग-अलग जगहों के हिसाब से अलग-अलग है जैसे-
चेन्नई: रु.1,45,000- 1,60,000
मुंबई: रु.2,00,000- 3,00,000
दिल्ली: रु.90,000- 1, 25,000
कोलकाता: रु.65,000-80,000
आई.वी.एफ के साइड इफ़ेक्ट-
आई.वी.एफ की प्रक्रिया के दौरान भ्रूण में दो या उसे अधिक अंडे डालें जाते है जिसकी वजह अक्सर दो या उसे अधिक बच्चें हो जाने का डर रहता है, लेकिन कुछ महिलाऐं जुड़वा बच्चे चाहती है उनके लिए ये तरीका सही है पर उसमें भी बच्चों के वजन में फर्क आने लगता है।
प्रजनन के दौरान महिलाओं को काफी दवाइयों का सेवन करना पड़ता है, जो शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। प्रजनन के दौरान खाई गई दवाइयों का किसी-किसी महिलाओं के शरीर में बुरा प्रभाव डालता है।
आई.वी.एफ से एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का जोखिम ज्यादा बना रहता है इसी कारण से भ्रूण गर्भाशय की जगह फैलोपियन ट्यूब में विकसित किया जाता है लेकिन इसके बाद बच्चा गलत तरीके से विकसित हो जाने पर रीड की हड्डी में स्पाइना बिफिडा होने के आसार रहते हैं।
डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।