कोरोना महामारी से पूरा विश्व पिछले 10 महीनों से जूझ रहा है। अभी तक कोरोना को लेकर कई शोध जिनमें अलग-अलग बातें सामने निकल कर आई हैं। कोरोना पर किए गए शोधों में यह बात पता चली है कि किसी व्यक्ति को कोरोना संक्रमण होने का कितना खतरा है यह उसकी उम्र, लिंग और मेडिकल हिस्ट्री पर निर्भर करता है। इसके साथ ही शोध में यह भी पाया गया कि कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमण से कितने खतरे में है इसमें उसके ब्लड ग्रुप का भी बड़ा रोल है। शोधकर्ताओं के मुताबिक कुछ ब्लड ग्रुप कोरोना से जल्दी प्रभावित होते हैं तो कुछ ब्लड ग्रुप में इसका खतरा कम होता है। सबसे पहले चीन के शोधकर्ताओं ने मार्च के अंत में इस बात की जानकारी दी थी कि 'ए' ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना वायरस से ज्यादा खतरा है। वहीं, 'ओ' ग्रुप वालों पर इसका कम असर होता है।
ओ ब्लड ग्रुप वाले लोगों को कोरोना संक्रमण का कम खतरा
हाल ही में 'ब्लड एडवांसेज' में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने कोरोना महामारी की गंभीरता और कोरोना के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में रिसर्च की। यह रिसर्च कोरोना टेस्ट करवाने वाले 473,000 लोगों पर की गई। रिसर्च में यह पाया गया कि अगर 'ओ' ब्लड ग्रुप वाले लोग कोविड-19 की चपेट में आते हैं, तो उनमें संक्रमण और अन्य तरह की स्वास्थ्य जटिलताओं का खतरा कम होता है।जबकि, ए और एबी ब्लड ग्रुप के लोगों में संक्रमण का खतरा सबसे अधिक होता है।
'ए' और 'एबी' ब्लड ग्रुप वाले लोग होते हैं सबसे ज्यादा प्रभावित
रिसर्च के दौरान पता चला कि 'ए' और 'एबी' ब्लड ग्रुप वाले लोगों को को अस्पताल में भर्ती होने के बाद भी लंग इंजरी और रीनल इंफेक्शन जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। रिसर्च में यह भी पाया गया कि ए और एबी ब्लड ग्रुप वाले लोगों में संक्रमण का खतरा इतना बढ़ सकता है कि उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट और वेंटिलेटर की जरूरत हो सकती है।रिसर्च के दौरान यहब बात भी पता चली कि ए और एबी ब्लड ग्रुप वाले लोगों को अस्पताल में ज्यादा समय के लिए भर्ती नहीं रहना पड़ता है। हालाँकि, इन दोनों ब्लड ग्रुप वाले लोगों को अन्य लोगों के मुकाबले आईसीयु में ज़्यादा दिन रहना पड़ता है।
वैज्ञानिकों की अनुसार यह तय करना मुश्किल है कि किसी व्यक्ति पर कोरोना का क्या असर होगा लेकिन इस तरह के शोधों से यह पता चल सकेगा कि कौन से लोगों में संक्रमण की चपेट में आने का खतरा अधिक है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बड़े स्टार पर की गई इस तरह की रिसर्च से कोविड के गंभीर मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाई जा सकेगी।