अगर आप भी रातों में उठ-उठकर खाते हैं खाना तो हो सकता है नाइट ईटिंग सिंड्रोम

  • मिताली जैन
  • Sep 07, 2019

अगर आप भी रातों में उठ-उठकर खाते हैं खाना तो हो सकता है नाइट ईटिंग सिंड्रोम

पिछले कुछ समय में जिस तरह लोगों की खानपान की आदतों व जीवनशैली में बदलाव आया है, उसके कारण व्यक्ति में कई तरह के ईटिंग डिसऑर्डर ने जन्म लिया है। ऐसी ही खानपान से जुड़ी बीमारी है नाइट ईटिंग सिंड्रोम। नाइट ईटिंग सिंड्रोम अर्थात् एनईएस एक ऐसी स्थित है जो रात में नींद की समस्याओं के साथ अधिक खाने को जोड़ती है। इस परेशानी में व्यक्ति डिनर के बाद बहुत खाते हैं, इससे उन्हें सोने में परेशानी होती है। इतना ही नहीं, ऐसे व्यक्ति रात में जागने पर भी कुछ न कुछ खाना शुरू कर देते हैं। तो चलिए जानते हैं नाइट ईटिंग सिंड्रोम के बारे में−

पहचानें इसे

एनईएस होने पर व्यक्ति रात में काफी अधिक खाता है। यहां तक कि वह अपनी दैनिक कैलोरी का कम से कम एक चौथाई हिस्सा डिनर के बाद खाते हैं। इतना ही नहीं, ऐसे व्यक्ति सप्ताह में दो से तीन बार रात में जरूर उठते हैं और खाना शुरू कर देते हैं। वैसे इस स्थित में व्यक्ति को भली−भांति याद होता है कि उसने पिछली रात क्या खाया अर्थात यह समस्या नींद में खाने की समस्या नहीं है क्योंकि इसमें व्यक्ति पूरी तरह चेतना में होता है। 

लक्षण

एनईएस होने पर व्यक्ति सिर्फ रात्रि में ही अधिक नहीं खाता, बल्कि इसके अतिरिक्त भी उसमें कुछ लक्षण नजर आते हैं। जैसे−

  • सुबह के समय भूख कम लगना
  • सप्ताह में चार से पांच रातों में नींद न आना या अनिद्रा की समस्या
  • डिनर के बाद और सोने से पहले कुछ न कुछ खाने की तीव्र इच्छा

कारण

एनईएस होने के कारण वैसे तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह स्लीप वेक साइकिल और कुछ हार्मोन से जुड़ा है। वैसे जिन लोगों को अवसाद, चिंता आदि परेशानी रहती है, उन्हें भी एनईएस होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। वहीं मोटापे के कारण भी यह समस्या आपको घेर सकती है। वैसे तो एनईएस होने की संभावना 100 में से 1 को होती है, वहीं मोटे लोगों के लिए 10 में से 1 व्यक्ति को यह समस्या हो सकती है। वहीं आनुवंशिक कारणों के चलते भी व्यक्ति नाइट ईटिंग सिंड्रोम पीड़ित हो सकता है।

ऐसे करें पहचान

इस बीमारी का पता लगाने के लिए सबसे पहले डॉक्टर व्यक्ति से उसकी खानपान व नींद संबंधी आदतों के बारे में कुछ सवाल करते हैं। इसके अतिरिक्त पॉलीसोम्नोग्राफी नामक एक स्लीप टेस्ट के जरिए इस बीमारी के बारे में पता लगाया जाता है। इस टेस्ट में व्यक्ति के ब्रेन वेव्स, ब्लड में ऑक्सीजन का स्तर और हार्ट व ब्रीदिंग रेट की जांच की जाती है।

मिताली जैन

डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।


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