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जानिये डेंगू बीमारी के लक्षण और बचाव के उपाय

By Healthy Nuskhe | Sep 20, 2019

यह वह मौसम है जिसमें मच्छरों का प्रजनन सबसे अधिक होता है। बारिश के जाने और ठंड के आने के बीच के इस समय में मच्छरों से होने वाली बीमारियों की सबसे अधिक संभावना होती है। इसी समय, बच्चों के मच्छरों के काट जाने से होने वाली बीमारियों से ग्रसित होने की आशंका बढ़ जाती है। हालांकि मच्छरों के कारण होने वाली बीमारियों से किसी भी उम्र के व्यक्ति के ग्रसित होने की संभावना होती है। पर बच्चे खासतौर से निशाने पर रहते हैं। यही वह समय है जब बच्चों की छह माही परीक्षाएं होती हैं। ऐसे में मच्छरों के काटने से होने वाली किसी भी बीमारी से उनकी परीक्षाओं पर असर पड़ सकता है। दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में इस समय डेंगू का प्रकोप सबसे अधिक होता है। जुलाई से नवंबर के बीच डेंगू, चिकुनगुनिया और मलेरिया के सबसे अधिक मामले सामने आते हैं। इसी वर्ष सितंबर के पहले सप्ताह तक दिल्ली के आसपास डेंगू के सौ से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। दक्षिण भारत में तेलंगाना में डेंगू का प्रकोप चरम पर है। वहां इसके हजारों मामले सामने आए हैं। उत्तराखंड में हरिद्वार और देहरादून से भी कई मामले सामने आए हैं।
 
दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही डेंगू एक वैश्विक समस्या बन चुका है। यह बीमारी सौ से भी अधिक देशों में फैली हुई है। एशिया और दक्षिण अमेरिका में इसका प्रकोप अधिक है। अनुमान है कि हर वर्ष पांच करोड़ से अधिक लोग डेंगू से प्रभावित होते हैं और दस से बीस हजार लोगों की मृत्य़ु हो जाती है। 
क्या होता है डेंगू
 
जैसा कि बताया गया है डेंगू मच्छर के काटने से शरीर में फैले वायरस के कारण होता है। यह मच्छरों की मादा प्रजाति एडीज़ के काटने से फैलता है जो प्राय: नालियों और खुली जगहों पर भरे साफ पानी में पनपता है। इसके लक्षण सामान्यत: संक्रमण होने के तीन से चौदह दिनों के भीतर दिखने लगते हैं। अगर तेज बुखार हो जिसमें लगातार सिरदर्द बना रहे। साथ ही उल्टी होने के अलावा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द बना रहे तो यह डेंगू बुखार हो सकता है। इसमें त्वचा पर लाल रंग के निशान भी पड़ जाते हैं। अगर बुखार की पहचान हो जाए और सही समय पर इलाज शुरू हो तो दो से सात दिनों के भीतर मरीज ठीक हो सकता है। लेकिन कुछ मामले बिगड़ भी जाते हैं। ऐसे मामलों में नाक-मुंह से खून आने लगता है, खून में प्लेटलेट की मात्रा कम हो जाती है और कई बार रक्तचाप खतरनाक रूप से नीचे चला जाता है।
 
वैसे इस बीमारी से बचाव के लिए वैक्सीन भी विकसित की गई है। यह कई देशों में उपलब्ध है। हालांकि भारत में यह उपलब्ध नहीं है इसलिए हमें बचाव के तरीके अपनाने की ज्यादा जरूरत है। इसके इलाज में मुंह या नसों के जरिए तरल पदार्थ दिया जाता है। कई गंभीर मामलों में खून चढ़ाने की नौबत भी आ जाती है। बुखार कम करने और दर्द से राहत देने के लिए डॉक्टर पैरासिटेमॉल देते हैं। कुछ देशी तरीके भी आजमाए गए हैं। जैसे कच्चे पपीते का सेवन एवं उसकी पत्तियों को उबाल कर पीने से भी लाभ होता है। गिलोय के डंठल को भी उबाल कर उसका काढ़ा पीने से प्लेटलेट बढ़ते हैं। कच्चे नारियल का पानी पीने से भी लाभ होता है।

बचाव के उपाय
 
डेंगू तथा अन्य मच्छर जनित रोगों के बारे में कहा जाता है कि इनका बचाव ही इनका इलाज है। इनके बारे में जनजागरूकता अभियान लंबे समय से चला आ रहा है। इसके बावजूद लोग अपनी लापरवाही के कारण डेंगू के शिकार बन जाते हैं। ऐडीज़ मच्छर को पनपने का मौका नहीं देना चाहिए। जहां-जहां इसके पनपने की संभावना हो वहां पर खासतौर से सफाई करनी चाहिए। पानी कहीं भी खुला न छोड़ें। अगर ऐसा कर पाना संभव न हो तो उसमें कीटनाशक या फिर कोई अन्य ऐसा ही पदार्थ डाल देना चाहिए। लोग मच्छर से अपनी सुरक्षा करें। शरीर को पूरी तरह ढंकने वाले कपड़े पहनने चाहिए। बच्चों का खासतौर से ध्यान रखें। उन्हें खेलने के लिए तभी जाने दें जब उनका बदन पूरी तरह से ढंका हो। घरों में मच्छरदानी का इस्तेमाल कर सकते हैं। मच्छरों को दूर रखने वाले क्रीम भी लगाए जा सकते हैं। घरों में कपूर जलाने से मच्छर भागते हैं। बच्चों को नीम का तेल या कपूर मिला नारियल का तेल लगाने से भी मच्छरों को दूर रखने में मदद मिलती है। मौसम बदलने के साथ यह बीमारी तेजी से फैलती है। ऐसे में बदलते मौसम में सावधानी रखना बेहद जरूरी है।
हालांकि अच्छी बात यह है कि जनजागरूकता के कारण इस बीमारी पर अंकुश लगाने में काफी सफलता मिली है। दिल्ली में पिछले साल डेंगू और चिकुनगुनिया के करीब 2800 मामले सामने आए थे और इनमें चार लोगों की मौत हुई थी। इस बार अभी तक किसी मौत की खबर नहीं है। दिल्ली सरकार ने विशेष रूप से डेंगू के खिलाफ अभियान चलाया है। इसमें प्रचार माध्यमों में लोगों से अपने घरों के आसपास खुली जगहों पर जमा पानी हटाने और मच्छरों के पैदा होने से रोकने के बारे में जानकारी दी जा रही है।
 
-डॉ. मनीषा शर्मा
 

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