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क्या वायु प्रदूषण से बढ़ेगा कोरोना महामारी का संकट? जानिए क्या कहती है रिसर्च

By Healthy Nuskhe | Oct 28, 2020

दुनिया के कई हिस्सों में कोरोना वायरस को लेकर रोज नए-नए शोध किए जा रहे हैं जिनमें अलग-अलग बातें सामने निकल कर आ रही हैं। कोरोना वायरस संक्रमण के शुरुआती दिनों में यह कयास लगाए जा रहे थे कि गर्मी बढ़ने से कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहीं, कोरोना वायरस को लेकर हुए नए शोध में वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि सर्दियों में कोरोना संक्रमण बढ़ने की आशंका है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ठंड में कोरोना वायरस और ज्यादा खतरनाक हो जाएगा। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि वायु प्रदूषण के कारण कोविड-19 से मौत का जोखिम ज़्यादा होता है।    

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दुनियाभर में वायु प्रदूषण का कोविड-19 से हुई 1 लाख 70 हजार लोगों की मौत में योगदान हो सकता है।  अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के कारण होनेवाली 1। 15 मिलियन मौत में 15 फीसदी का संबंध प्रदूषण से जोड़ा है।  रिसर्चर्स के मुताबिक अगर हवा दूषित नहीं होती तो ब्रिटेन में कोरोना संक्रमण से होनेवाली मौतों को 14 फीसदी तक टाला जा सकता था।  इसका मतलब यह हुआ कि अगर प्रदूषण स्तर  नियंत्रित होता तो करीब 6300 लोगों की जिंदगी बच सकती थी। 

वायु प्रदूषण बनाता है कोविड-19 को ज्यादा जानलेवा?  
हाल में कार्डियोवस्कुलर रिसर्च पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने दुनिया के कई देशों में प्रदूषण स्तर पर विचार किया।  शोधकर्ताओं ने मैथमेटिकल मॉडलिंग का इस्तेमाल करते हुए हिसाब लगाया कि कितनी कोविड-19 से जुड़ी मौत के पीछे आंशिक रूप से लंबे समय तक दूषित वायु का कितना हिस्सा है।  रिसर्च के आंकड़ों से पता नहीं चलता है कि वायु प्रदूषण सीधे कोविड-19 से मौत का कारण बनता है।  हालांकि, वैज्ञानिकों ने इससे इंकार भी नहीं किया है। 

कार-फैक्ट्री से निकलता जहरीला धुंआ बनाता है कोविड-19 को घातक   
फैक्ट्री और कार से निकला जहरीला धुआं स्वास्थ्य स्थिति की दर को आगे बढ़ाता है जिससे लोगों को कोविड-19 का ज्यादा जोखिम होता है।  पिछले शोध के मुताबिक दुनियाभर में हर साल करीब 7 मिलियन मौत वायु प्रदूषण के कारण होती हैं।  पहले हुए एक शोध के मुताबिक, वायु प्रदूषण के कारण हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, अस्थमा और कोरोनरी आर्टरी डिजीज जैसी गंभीर बीमारियाँ होती हैं।  
 

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एबीपी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्वतंत्र वैज्ञानिकों ने खोज पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रदूषण से मौत के ठीक-ठीक आंकड़ों को बता पाने में असमर्थता जताई है।  लेकिन, उन्होंने स्वीकार किया कि शोध के अनुमान पूरी तरह संभव हो सकते हैं।  रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान शोध में कण प्रदूषण (पर्टिकुलेट मैटर) पर फोकस किया गया है।  कण प्रदूषण को PM2.5 भी कहा जाता है।  ये वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है।  PM2.5 मुख्य रूप से कार के धुएं, निर्माण उद्योग और जीवाश्म ईंधनों के जलाने से निकलता है।  इसमें धूल, गर्द और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं।  हवा में PM2.5 की मात्रा 60 और PM10 की मात्रा 100 होने पर ही उसे सांस लेने के लिए सुरक्षित माना जाता है। 
 

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